Tuesday, 19 July 2011

लोकायुक्त के निशाने पर दिल्ली की सीएम शीला

 18 Jul 2011, 2140 hrs IST,नवभारत टाइम्स 

दिल्ली सरकार को लगातार कटघरे में रख रहे दिल्ली के लोकायुक्त ने इस बार मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को टारगेट किया है और कहा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में गरीबों को सस्ते दाम पर फ्लैट देने का वादा कर मुख्यमंत्री ने गरीबों को गुमराह किया था। उन्होंने मुख्यमंत्री के इस वादे को चुनावी लाभ के लिए घोषणा बताते हुए राष्ट्रपति से अनुशंसा की है कि मुख्यमंत्री को चेतावनी दें कि भविष्य में वह ऐसे वादे न करें।


करीब दो साल पहले पेशे से वकील सुनीता भारद्वाज ने लोकायुक्त अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमें मुख्यमंत्री द्वारा चुनावी वर्ष 2008 में राजीव रत्न आवास योजना के तहत हजारों लोगों को सस्ते कीमत पर फ्लैट देने की घोषणा को हवाई बताते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। उनका आरोप था कि राजीव रत्न आवास योजना के तहत राजधानी में फ्लैट ही नहीं बने हैं। जब लोकायुक्त ने सुनवाई शुरू की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। सरकार ने घोषणा की थी कि 60,000 फ्लैट बनकर तैयार हैं, लेकिन दिसंबर 2009 में सरकार के शहरी विकास विभाग ने सुनवाई के दौरान जो दस्तावेज सौंपे उनमें तैयार फ्लैटों की संख्या सिर्फ आठ हजार निकली। लंबी सुनवाई के बाद सोमवार को लोकायुक्त अदालत ने अपना फैसला सुनाया, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने पद का दुरुपयोग कर गरीबों को सस्ते दामों पर फ्लैट देने की घोषणा सिर्फ चुनाव में लाभ उठाने के मकसद से की थी।

लोकायुक्त जस्टिस मनमोहन सरीन ने अपने 22 पेज के फैसले में कहा है कि मुख्यमंत्री ने वर्ष 2009 के अंत तक 60,000 फ्लैटों के आवंटन तथा वर्ष 2012 तक ऐसे 4 लाख फ्लैटों के निर्माण कार्य पूरा होने की घोषणा की थी, जो निराधार पाई गई। उन्होंने कहा कि आमतौर पर राजनीतिक पाटिर्यां चुनावी फायदे के लिए इस तरह की घोषणाएं करती हैं, जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। 



गौरतलब है कि गत फरवरी माह में लोकायुक्त ने राष्ट्रपति से दिल्ली सरकार के मंत्री राजकुमार चौहान को बर्खास्त करने का आग्रह किया था। उन्होंने एक मामले में सुनवाई के दौरान चौहान को एक नामी रिजॉर्ट को टैक्स से बचाने का दोषी पाया था। यह अलग बात है कि राष्ट्रपति ने लोकायुक्त के आग्रह को पूरे तौर पर खारिज कर दिया था। वैसे लोकायुक्त अदालत में दिल्ली सरकार के खिलाफ अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के मसले पर एक और सुनवाई भी चल रही है, जिस पर फैसला लंबित है।

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